भारत के अखबारों के पास शानदार अतीत है और आज भी अनेक अखबार अपने पत्रकारीय कर्म का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें मैं हिन्दू को सबसे आगे रखता हूँ। पहले भी और आज भी। अखबार के सम्पादकीय दृष्टिकोण की बात छोड़ दें तो उसकी किसी बात से असहमति मुझे कभी नहीं हुई। हाल के वर्षों में बिन्दू व्यावसायिक दौड़ में भी शामिल हुआ है और बहुत से ऐसे काम कर रहा है, जो उसने दूसरे अखबारों की देखादेखी या व्यावसायिक दबाव में किए होंगे। पर ऐसा मैने नहीं देखा कि सम्पादक अपने अखबार की व्यावसायिक नीतियों और सम्पादकीय नीतियों के बरक्स अपनी राय पाठकों के सामने रखे। मीडिया ब्लॉग सैंस सैरिफ ने
अखबारों में जैकेट का चलन बढ़ता जा रहा है। एक शुरू करता है तो दूसरा चार जैकेट लगा देता है। बेशक इसमें पैसा मिलता है, पर शायद अब कोई सम्पादकीय विभाग अपने विज्ञापन विभाग से इस मामले पर दरियाफ्त करता हो। पर यह मसला जैकेट का नहीं, अखबार के विचार का है। इस सोमवार को हिन्दू के चेन्नई संस्करण में अक्षय तृतीया पर एक इन हाउस विज्ञापन जैकेट के रूप में छापा। इसका स्पष्टीकरण अखबार के सम्पादक सिद्धार्थ वरदराजन ने छापा है जो एक ओर पत्रकारिता की उस रेखा को स्पष्ट करता है, जिसका उल्लंघन लगातार हो रहा है। साथ ही अखबार की वैचारिक रेखा को व्यक्त करता है। बहरहाल उस संस्थान के भीतर क्या राय बनती है यह अलग बात है, पर इसे पारदर्शी तरीके से पाठक के सामने भी लाया जा सकता है यह बात महत्वपूर्ण है। इसे खुद पढ़ें। औरमीडिया ब्लॉग सैंस सैरिफ में यह रपट पढ़ें
इसके पहले 1 जनवरी 2012 के अंक में सोनिया गांधी की प्रशंसा में छपे जैकेट पर मिली प्रतिक्रियाओं के जवाब में सिद्धार्थ वरदराजन ने फेसबुक पर जो लिखा वह भी ध्यान देने लायक है। पहले जैकेट को देखें उसके बाद नवागत सम्पादक की प्रतिक्रिया। इस विज्ञापन की सबसे जोरदार पंक्तियाँ हैं
सिद्धार्थ वरदराजन ने तब अपने फेसबुक स्टेटस में लिखा था
“To all those who messaged me about the atrocious front page ad in The Hindu’s Delhi edition on Jan 1, my view as Editor is that this sort of crass commercialisation compromises the image and reputation of my newspaper. We are putting in place a policy to ensure the front page is not used for this sort of an ad again.”
हिन्दू के बारे में मेरी एक पुरानी पोस्ट पढ़ें
अखबारों में जैकेट का चलन बढ़ता जा रहा है। एक शुरू करता है तो दूसरा चार जैकेट लगा देता है। बेशक इसमें पैसा मिलता है, पर शायद अब कोई सम्पादकीय विभाग अपने विज्ञापन विभाग से इस मामले पर दरियाफ्त करता हो। पर यह मसला जैकेट का नहीं, अखबार के विचार का है। इस सोमवार को हिन्दू के चेन्नई संस्करण में अक्षय तृतीया पर एक इन हाउस विज्ञापन जैकेट के रूप में छापा। इसका स्पष्टीकरण अखबार के सम्पादक सिद्धार्थ वरदराजन ने छापा है जो एक ओर पत्रकारिता की उस रेखा को स्पष्ट करता है, जिसका उल्लंघन लगातार हो रहा है। साथ ही अखबार की वैचारिक रेखा को व्यक्त करता है। बहरहाल उस संस्थान के भीतर क्या राय बनती है यह अलग बात है, पर इसे पारदर्शी तरीके से पाठक के सामने भी लाया जा सकता है यह बात महत्वपूर्ण है। इसे खुद पढ़ें। औरमीडिया ब्लॉग सैंस सैरिफ में यह रपट पढ़ें
इसके पहले 1 जनवरी 2012 के अंक में सोनिया गांधी की प्रशंसा में छपे जैकेट पर मिली प्रतिक्रियाओं के जवाब में सिद्धार्थ वरदराजन ने फेसबुक पर जो लिखा वह भी ध्यान देने लायक है। पहले जैकेट को देखें उसके बाद नवागत सम्पादक की प्रतिक्रिया। इस विज्ञापन की सबसे जोरदार पंक्तियाँ हैं
"We remain, Madamji,
ever at your feet"
सिद्धार्थ वरदराजन ने तब अपने फेसबुक स्टेटस में लिखा था
“To all those who messaged me about the atrocious front page ad in The Hindu’s Delhi edition on Jan 1, my view as Editor is that this sort of crass commercialisation compromises the image and reputation of my newspaper. We are putting in place a policy to ensure the front page is not used for this sort of an ad again.”
हिन्दू के बारे में मेरी एक पुरानी पोस्ट पढ़ें