Wednesday, October 12, 2011

सोनिया गांधी की बीमारी की कवरेज



पिछले शुक्रवार यानी 7 सितम्बर को करन थापर के शो लास्ट वर्ड में सोनिया गांधी की बीमारी पर भारत के मीडिया में हुई फीकी चर्चा पर चर्चा हुई। हालांकि विषय काफी पुराना हो गया, करन थापर इसके पहले भी चर्चा कर चुके थे, जिसे मैने नीचे लिंक 1 में दिया है। लिंक 2 में दी गई चर्चा ताज़ा है। बहरहाल इस मामले में विचार के कुछ बिन्दु हैं, जिन्हें पहले समझना चाहिए। उसके बाद मीडिया की प्रवृत्ति पर बात करनी चाहिए।

1.क्या किसी राजनेता की बीमारी जैसे व्यक्तिगत मामले को चर्चा का विषय बनाना उचित होगा? सोनिया जी किसी सरकारी पद पर भी नहीं हैं कि ऐसे विषय जनता के जानकारी पाने के अधिकार के दायरे में आएं। यदि वे पूरी तरह निजत्व के दायरे में हैं तब बात खत्म। पर 22 सितम्बर के हिन्दू में निरूपमा सुब्रह्मण्यम ने लिखा है कि राजनेताओं को निजता का अधिकार है, पर यदि उनका जीवन सार्वजनिक कार्यों पर असर रखता है तब वह सार्जनिक भी हो जाता है। श्रीमती सोनिया गांधी कांग्रेस की वरिष्ठ नेता हैं। पिछले साल अमेरिका के राष्ट्रपति ने घोषणा की थी कि अब से उनके मेडिकल चेकअप की जानकारी सार्वजनिक रूप से दी जाएगी। सितम्बर 2009 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन के स्वास्थ्य को लेकर विवाद हुआ था। प्रधामंत्री मनमोहन सिंह और उसके पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेटी के स्वास्थ्य को लेकर भी चर्चा हो चुकी है। निरूपमा सुब्रह्मण्यम का लेख लिंक 3 में।

करन थापर के शो में कोई यह नहीं बता पाया कि भारत के मीडिया ने इस मामले को ठीक से कवर क्यों नहीं किया। एन राम भी नहीं बता पाए कि निरूपमा सुब्रह्मण्यम का लेख छापने वाले हिन्दू ने कवरेज क्यों नहीं की। सच यह है कि हमारा मीडिया अनेक अवलरों पर ब्लैंक हो जाता है। जैसे कि नीरा राडिया वाले मामले में अचानक समूचे मीडिया का काठ मार गया था। पहले इसकी चर्चा इंटरनेट पर हुई। उसके बाद कुछेक अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने हिम्मत की। इससे लगता है कि हम बहुत सी बातों पर जानकर अनजान बनना चाहते हैं और इसे सहज और स्वाभाविक मानते हैं।

लिंक देखें

1.करन थापर के एक और शो में इसी विषय पर बातचीत

2.सोनिया गांधी की बीमारी की कवरेज को लेकर करन थापर के शो में कुछ वरिष्ठ पत्रकारों की बातचीत

3.हिन्दू में निरूपमा सुब्रह्मण्यम का लेख

No comments:

Post a Comment